रिपोर्ट : विमल कुमार
भारत जिसे सबसे बड़ा लोकतंत्र होने का सौभाग्य मिला। 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ इसके ठीक 3 साल बाद 26 जनवरी 1950 को हमे एक संविधान मिला। हमे वोट देने का अधिकार मिला और एक सपना देखा गया कि हमारे देश की आने वाली जनता हम आजाद भारत मे एक अच्छे नागरिक की भूमिका निभाएंगे।
पर हमारे देश का जनतंत्र पॉलिटिकल लॉलीपॉप का एक छोटा सा कचड़ा बन के रह गया है। लोकतंत्र जनता को अधिकार देता है, कि वो खुद सरकार चलाए पर हम थोड़े से लालच मे आकर अपना एक महत्वपूर्ण मत किसी ऐसे राजनेता को दे देते है जो देश और जनता के लिए नासूर बन जाता है। सिर्फ अपने कुछ पर्सनल फायदे के लिए आज कल मैं नेताओ के भाषण सुनता हूॅ तो वो कहते है अपने मेनिफेस्टों में लेकर आते है कि मैं छात्रों को मोबाइल, लैपटॉप दूंगा, बेरोजगारी भत्ता दूंगा, कर्ज माफ करूंगा और तुम्हें भी आरक्षण दूंगा और भी बहुत कुछ।
कभी आपने ऐसा सोचा कि मेरा कर्ज माफ हो गया, बेरोजगारी भत्ता 2000-3000 मिल गया तो उससे क्या होगा। देश के वो लोग जो इसका एक बार फायदा उठा लेंगे आलसी हो जाएंगे क्योंकि उन्हे पता है कि आगे आने वाली सरकार, आने वाले नेता ये सब कुछ फ्री मे देने वाले है। जनाब ऐसा ही चलता रहा तो देश एक दिन विकलांग हो जाएगा और हम बेरोजगारी भत्ता लेते रह जाएंगे।
हम सरकार चुनते है उसके पांच साल खत्म होते हीं वो दूसरी बार चुनाव लड़ने के लिए फिर नए वादे करते हैै। नया मेनिफेस्टो लाया जाता है और हम अपना कीमती वोट देकर उसको फिर सत्ता की कुर्सी पर बिठा देते है। पर इसकी तरफ कभी ध्यान नहीं देते की उन्होंने जो पहले वादे किए थे वो पूरे हुए कि नहीं।
देश को 70 साल हो गये अपने लोकतंत्र पर खड़े हुए जिसमें सबसे ज्यादा कांग्रेस की सरकार रही। यूपीए सरकार की बात करें तो मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि आज राहुल गांधी जो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष है उनको लगभग 50 साल के विकास को न दिखा कर उनको लोगों के कर्ज माफ, बेरोजगारी भत्ता देने आदि मुद्दों पर वोट मांग रहे है और भाजपा अपना विकास ना दिखा कर अपनी उपलब्धियां ना गिना कर पण्डित नेहरू की गलतिया गिनाकर वोट मांगती है।
देश का जब एक सैनिक देश की सीमा की रक्षा करता है, देश की रक्षा, हम लोगों की रक्षा करते हुए शाहिद होता तो हम भी देश भक्ति दिखाते है। मोमबत्तियां जलाते और घर आकर सो जाते है। लेकिन कभी सोचा है कि देश के सुरक्षाबल तो अपना काम ईमानदारी से करते हुए शहीद होते है, तो किसके लिए ? उस जनता के लिए जो दो-दो सौ रुपये मे अपना ईमान बेच देती है।
अगर शिक्षा की बात की जाए तो विश्व की टॉप 10 यूनिवर्सिटी मे भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है। लगे हाथ आरक्षण की भी बात कर लेते है। भारतीय सरकार को कुछ ऐसा करना चाहिए था कि आज 70 सालो मे पूरी तरह से आरक्षण खत्म कर देती। कुछ ऐसा समाधान निकालती की आरक्षण की जरूरत खत्म हो जाए। पर सरकारों को राजनीति चमकानी है। इसका समाधान निकालने के बजाय और बढ़ाया जा रहा है। और इन्ही को जनता चुनती है।
तो क्यों ना एक ऐसी पहल की जाए, कि एक देश का सच्चा नागरिक होने के नाते इस बार छोटे छोटे लॉलीपॉप पर नहीं देश के विकास के ऊपर मतदान किया जाए। जो नेता आपके क्षेत्र मे रैली करने आता है चुनाव प्रचार करता है। रैली में नए-नए वादे करता है तो उससे एक बार ये पूछे कि जो पिछली बार वादे किए थे उनका क्या हुआ ? उनमे से कितने वादे पूरे हुए ? फिर उसे क्षेत्र मे घुसने दिया जाए। मैं गारंटी के साथ कहता हूँ कि आधे से ज्यादा पार्टियां, नेता राजनीति करना भूल जाएंगे।
तब दिखेगी असली देशभक्ति अगर ऐसा एक या दो जगह भी हो गया तो एक ऐसा जन सैलाब अयेगा जिससे देश की दिशा और दशा दोनों बदल जाएगी। बस एक ऐसे आन्दोलन की जरूरत है जो जातिगत, धर्मगत छोड़ कर एक देश के हित के लिए आंदोलन बने।