छात्रों में तर्कसंगत सोच विकसित करने के लिए शिक्षा प्रणाली को अनुकूल बनाएं : उप-राष्‍ट्रपति
 



रिपोर्ट: अजीत कुमार






उप-राष्‍ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने छात्रों में तर्कसंगत सोच विकसित करने तथा जीवन की चुनौतियों का स्‍वत: सामना करने में सक्षम बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली को अनुकूल बनाने का आह्वान किया है। एक ऐसी शिक्षा जो दिमाग, हृदय, शरीर और उत्‍साह को संतुलित करे, उसे ही सच्‍चे अर्थों में संपूर्ण शिक्षा कही जा सकती है। बच्‍चों को ज्ञान अर्जित और समाहित करने में समर्थ होने के साथ-साथ जीवन की वास्‍तविक स्थिति में ज्ञान के इस्‍तेमाल में भी सक्षम होना चाहिए।


तमिलनाडु के केन्‍द्रीय विद्यालय और अन्‍य विद्यालयों के छात्रों से दिल्‍ली में उप-राष्‍ट्रपति भवन में बातचीत करते हुए, उप-राष्‍ट्रपति ने कहा कि भारत में गुरू शिष्‍य परंपरा जैसी एक महान परंपरा होती थी, जिसमें शिक्षक और छात्र एकसाथ रहते थे और निरंतर बातचीत में लगे रहते थे। उन्‍होंने कहा कि हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली में ऐसी महान परंपरा शामिल होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि उपनिषदों के माध्‍यम से हमारे प्राचीन समय की ये वार्ताएं हमें लिखित रूप में प्राप्‍त हुई है।


नायडू ने कहा कि शिक्षा प्रणाली द्वारा बच्‍चों को स्‍कूल का आनंद लेने और उन्‍हें जीवन पर्यंत शिक्षणार्थी बनाने की स्‍वीकृति होनी चाहिए। उन्‍होंने कहा कि अवलोकन, पठन, विमर्श, प्रतिचित्रण, विश्‍लेषण और समन्‍वय के माध्‍यम से सच्‍चे अर्थों में शिक्षण संभव होता है। उन्‍होंने कहा कि पाठ्यक्रमों के अनुकूलन में ऐसे पहलुओं पर जोर देना चाहिए, जिससे बच्‍चे जिज्ञासु, सृजनशील, जवाबदेह, संप्रेषणशील, आत्‍मविश्‍वास से परिपूर्ण और समर्थ बनें।


उप-राष्‍ट्रपति ने कहा कि शिक्षक केवल छात्रों को केवल शैक्षिक विषयों के बारे में मार्ग दर्शन न करें, बल्कि आज की बढ़ती जटिलता वाली दुनिया में सफल जीवन-यापन के लिए अनिवार्य जीवन कौशल विकसित करने में भी उनकी मदद करें। युवाओं को अवसाद से बचाने में परिवार प्रणाली को सबसे अच्‍छा उपाय बताते हुए उन्‍होंने माता-पिता से मांग करते हुए कहा कि वे नियमित रूप से बच्‍चों के साथ बातचीत करें और उनकी समस्‍याओं को समझें।


कुछ शारीरिक क्रियाकलाप अथवा कसरत को स्‍वस्‍थ रहने के लिए आवश्‍यक बताते हुए उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि शिक्षाविदों और माता-पिता द्वारा खेल शिक्षा को और भी अधिक महत्‍व देना चाहिए। छात्रों को अपने स्‍कूल की अवधि के दौरान 50 प्रतिशत समय कक्षाओं के बाहर बिताना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि खेल-कूद में भाग लेने से बच्‍चों में आत्‍मविश्‍वास, समानता, समूह भावना और सहनशीलता के साथ-साथ साझेदारी और देख-भाल की भावना भी समाहित होती है।