प्राचीन भारतीय भाषाओं की समृद्धि और संरक्षण समय की मांग : उपराष्ट्रपति

रिपोर्ट : अजीत कुमार


 


 


 


उपराष्ट्रपति एम.वेंकैया नायडू ने कहा है कि प्राचीन भारतीय भाषाओं का संवर्धन और संरक्षण समय की मांग है क्योंकि यह हमारी प्राचीन सभ्यताओं से जुड़े मूल्यों, ज्ञान और विवेक के लिए बेहतर सूझबूझ प्रदान करती हैं।


प्राचीन भाषाओं के विद्वानों को दिल्ली में राष्ट्रपति का सम्मान प्रमाण-पत्र और महर्षि बद्रायन व्यास सम्मान प्रदान करने के बाद एकत्र प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए नायडू ने जोर देकर कहा “जब एक भाषा लुप्त होती है, पूरी संस्कृति खत्म हो जाती है। हम ऐसा होते नहीं देख सकते। भाषाओं सहित अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा करना हमारा संवैधानिक कर्तव्य है।”


यह कहते हुए विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययनों से अनुमान लगाया गया है कि करीब 600 भाषाएं समाप्त होने के कगार पर हैं और 250 से अधिक भाषाएं पिछले 60 वर्षों में लुप्त हो चुकी हैं, उपराष्ट्रपति ने कहा कि आधुनिक भारतीय भाषाओं की जड़ें पुरानी हैं और एक तरीके से उन्हें प्राचीन भाषाओं से निकाला गया है। उन्होंने चेतावनी दी “यदि हम इस संपर्क को बचाकर नहीं रखेंगे तो हम विरासत में प्राप्त इस खजाने की बहुमूल्य चाबी खो देंगे।”     


इस बात पर जोर देते हुए भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए बहुद्देश्यीय दृष्टिकोण की आवश्यकता है, नायडू ने कहा कि इसकी शुरूआत प्राइमरी स्कूल के स्तर पर हो जानी चाहिए और इसे शिक्षा के उच्च स्तर तक जारी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि कम से कम एक भाषा में कामकाजी साक्षरता सुनिश्चित होनी चाहिए।


लोगों से घर में अपने समुदाय में, सभाओं में और प्रशासन में अपनी पैतृक भाषाओँ का इस्तेमाल करने का आह्वान करते हुए, उपराष्ट्रपति ने मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आंदोलन का आह्वान किया। उन्होंने राज्य सरकारों, केंद्र, शिक्षाविदों और स्कूल प्रशासनों से कहा कि वे मातृभाषाओं में प्राथमिक और उच्च शिक्षा प्रदान करें।


नायडू मानना है कि भारतीय भाषाओं के प्रकाशनों, जरनलों और स्थानीय भाषाओं में बच्चों की पुस्तकों को प्रोत्साहित करने के अलावा बोलियों और लोक साहित्य की तरफ पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा “हमें उन लोगों पर गर्व होना चाहिए जो इन भाषाओं को बोलते हैं, लिखते हैं और उसमें संवाद करते हैं।”


यह कहते हुए कि भाषा एक प्रकार से संस्कृति, वैज्ञानिक जानकारी और दुनिया के विचार एक-दूसरे को प्रेषित करने का वाहन है, उपराष्ट्रपति ने कहा कि भाषा का विकास मनुष्य के विकास से जुड़ा हुआ है और लगातार इस्तेमाल से यह समृद्ध होती है।


उपराष्ट्रपति ने ऐसे उपाय करने का आह्वान किया जिससे प्राथमिक स्रोतों का इस्तेमाल करते हुए विद्वानों को अनुसंधान के लिए प्रोत्साहित किया जा सके और नया ज्ञान सामने आए। हमें लगातार ज्ञान बढ़ाते रहना चाहिए और अपने वर्तमान और भविष्य को संवारना चाहिए।


अपनी भाषाओं और संस्कृति को संरक्षित करने और उन्हें बढ़ावा देने के लिए प्रौद्योगिकी को उपयोग में लाना चाहिए। हमारे पास स्थानीय भाषाओं में संचार के लिए ऐसे अनेक प्रौद्योगिकी साधन होने चाहिए जिससे हम विभिन्न भाषाएं बोलने वाले अपने लोगों की जरुरतों को पूरा कर सकें।


इस प्रतिष्ठित कार्यक्रम का आयोजन मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने किया। इस कार्यक्रम में करीब 100 प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों, भाषाविदों ने हिस्सा लिया, जिन्होंने गद्य, कविता और साहित्य से जुड़े अन्य लेखों के जरिए प्राचीन भारतीय भाषाओँ के संरक्षण और संवर्धन में योगदान दिया है। इन विद्वानों द्वारा वर्ष 2016, 2017 और 2018 में संस्कृत, अरबी, फारसी, पाली, प्राकृत, प्राचीन कन्नड़, प्राचीन तेलुगु और प्राचीन मलयालम में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए इन्हें पुरस्कार प्रदान किए गए।


नायडू ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के लिए भाषा संबंधी डेटा संसाधन जारी किया और डेटा वितरण पोर्टल की शुरुआत की जो अनेक भारतीय भाषाओँ के लिए टेक्नोलॉजी और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को विकसित करने में मदद करेगा।


उपराष्ट्रपति द्वारा जारी डेटा स्रोत सार्वजनिक रूप से अब तक उपलब्ध इन भाषाओं का सबसे बड़ा संग्रह है। इसमें 19 अनुसूचित भारतीय भाषाओं में 31 बड़े मूलपाठ और भाषणों के आंकड़ों के सेट शामिल हैं। डेटा वितरण पोर्टल शिक्षा से जुड़े और गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठनों के लिए मुफ्त उपलब्ध होगा।


इस अवसर पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्च शिक्षा विभाग में सचिव आर. सुब्रमण्यम, सीआईएल निदेशक प्रो.डी.जी. राव, राष्ट्रीय संस्कृति संस्थान के कुलपति प्रो. पी.एन.शास्त्री, उच्च शिक्षा विभाग में संयुक्त सचिव संजय कुमार सिन्हा और सरकार के अनेक वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।