दिल्ली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का सियासी सफर

रिपोर्ट: अजीत कुमार


 



 


दिल्ली की सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहीं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शीला दीक्षित ने शनिवार को दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका निधन 81 वर्ष की उम्र में हुआ है। वे अपने शालीन व्यवहार के लिए कांग्रेस के साथ अन्य पार्टियों में भी काफी लोकप्रिय रहीं। उन्हें देश की राजधानी दिल्ली के कायाकल्प का श्रेय दिया जाता है। 
दिल्ली को विकास का चेहरा दिखाने वाली शीला दीक्षित का सियासी सफर बेहद की रोचक रहा है। शीला दीक्षित सबसे लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही है। वह तीन बार लगातार विधानसभा चुनाव जीती और दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक राज किया। उनके कार्यकाल के दौरान कई फ्लाईओवर बने और मेट्रो सेवा शुरू हुई। उनका नाता कई राज्यों से रहा।
वे जल्द ही गांधी परिवार के भरोसेमंद लोगों में शुमार हो गईं। उन्होंने 1984 में कन्नौज से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर संसद पहुंच गईं। उन्हें राजीव गांधी कैबिनेट में संसदीय कार्यमंत्री के रूप में जगह मिली। बाद में वे प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री भी बनीं। शीला वर्ष 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। उनके एक बेटा संदीप और बेटी लतिका हैं। उन्हें इसी साल लोकसभा चुनाव में उत्तर पूर्व दिल्ली सीट से भाजपा के मनोज तिवारी के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
शीला दीक्षित का जन्म 31 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था। वह पंजाब के एक कपूर परिवार से ताल्लुक रखती थीं। उन्होंने दिल्ली के कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मैरी स्कूल से पढ़ाई की और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस से उन्होंने इतिहास में एमए की डिग्री हासिल की। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास की पढ़ाई करने के दौरान शीला की मुलाकात विनोद दीक्षित से हुई जो उस समय कांग्रेस के बड़े नेता उमाशंकर दीक्षित के इकलौते बेटे थे। यहीं वे दोनों एक दूसरे के करीब आए। इसके बाद शीला दीक्षित ने विनोद दीक्षित के साथ शादी कर ली। विनोद दीक्षित एक आईएएस अफसर थे।
अस्सी के दशक में परिवार के साथ एक रेल यात्रा के दौरान शीला दीक्षित के पति विनोद कुमार दीक्षित की हार्ट अटैक से मौत हो गई। शीला को कांग्रेस में लाने का श्रेय विनोद दीक्षित को ही जाता है। शीला ने बखूबी बच्चों को भी संभाला और ससुर की राजनीतिक विरासत को भी। उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित भी कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक थे। 1969 में जब इंदिरा गांधी को कांग्रेस से निकाला गया तो उनका साथ देने वालों में उमाशंकर दीक्षित शामिल थे। जब इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई तो उमाशंकर दीक्षित उनकी वफादारी का इनाम मिला और वह 1974 में देश के गृहमंत्री बनाए गए।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चली कांग्रेस लहर में शीला दीक्षित भी यूपी के ब्राह्मण बहुल कन्नौज से लोकसभा पहुंच गईं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने तो वह उनकी मंत्रीमंडल का हिस्सा बनीं। लेकिन पांच साल के अंदर ही कुछ तो बोफोर्स की हवा और कुछ 84 सिख दंगों का असर, कांग्रेस का पूरे देश से पत्ता साफ हो गया। शीला दीक्षित चुनाव हार गईं। पति की मौत हो चुकी थी और 1991 में ससुर का भी देहांत हो गया। शीला दीक्षित पूरी तरह दिल्ली में बस गईं और सामाजिक कामों में लग गईं।
1991 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और नरसिम्हा राव पीएम बने, लेकिन इस बार कांग्रेस के अंदर गांधी परिवार को करिबियों को जगह नहीं मिली। लेकिन इसके बाद कांग्रेस का पतन शुरु हो गया। जब 1998 में सोनिया ने पार्टी की कमान संभाली तो उनकी एक बार फिर से पार्टी में सक्रिय तौर पर वापसी की। 1998 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने शीला को पूर्वी दिल्ली से मैदान में उतारा लेकिन बीजेपी के लालबिहारी तिवारी ने उन्हें हरा दिया। इसी साल विधानसभा चुनाव भी हुए। उस समय दिल्ली की सीएम सुषमा स्वराज थीं। बीजेपी इस चुनाव में हार गई और कांग्रेस ने दिल्ली की गद्दी शीला दीक्षित के हवाले कर दी। शीला दीक्षित गोल मार्केट से विधायक चुनी गईं। इसके बाद वे लगातार तीन बार यानी 15 साल तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं।