'हेल्लारो' गुजराती नृत्य गरबा के माध्यम से महिलाओं की आत्म अभिव्यक्ति तथा स्वतंत्रता पर बनी फिल्म है। यह जानकारी फिल्म के निर्देशक अभिषेक शाह ने दी। आईएफएफआई 2019 के भारतीय पनोरमा फीचर फिल्म भाग में यह फिल्म दिखाई गई। इसमें 1975 की कहानी है। कच्छ के रण के एक छोटे से गांव में मंझरी ब्याह दी जाती है, मंझरी वहां पितृ सत्तात्मक व्यवस्था से पीडि़त महिलाओं के समूह में शामिल हो जाती है। महिलाओं के लिए दमन से बचने का उनका एकमात्र रास्ता है जब वह रोजाना सवेरे दूर के तालाब से पानी भरने जाती हैं। एक दिन पानी भरने जाने के रास्ते में उन्होंने रेगिस्तान के बीच में कुछ लोगों को देखा और तब से उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई।
फिल्म के बारे में अभिषेक शाह ने कहा कि यह परम्परा से जुड़ी सार्वभौमिक कहानी है। यह दमन की यात्रा से अभिव्यक्ति की यात्रा तक की कहानी है। हेल्लारो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीतने वाली पहली गुजराती फिल्म है। निर्देशक ने कहा कि गुजराती भाषा में अब अच्छी प्रायोगिक फिल्में बन रही हैं। यह फिल्म श्रेष्ठ पहली फीचर फिल्म के लिए शताब्दी पुरस्कार की स्पर्धा में है। संवाददाता सम्मेलन में अभिनेता नीलम पंचाल तथा तेजल पंचसारा, एडिटर और पटकथा लेखक प्रतीक गुप्ता और निर्माता आयुष पटेल भी उपस्थित थे।
'हेल्लेरो' के कलाकारों में श्रद्धा डांगर, जयेश मोरे, तेजल पंचसारा तथा शैलेश प्रजापति शामिल हैं। निर्देशक अभिषेक शाह 15 गुजराती फिल्मों के कास्टिंग निर्देशक रहे हैं। वह लेखक, निर्देशक तथा 18 साल से अधिक समय से मुख्य धारा थियेटर के अभिनेता रहे हैं। उन्होंने टीवी विज्ञापन तथा प्रमोशनल फिल्में भी की हैं।
'नूरेह' फिल्म के निर्देशक आशीष पांडेय हैं। यह फिल्म भारतीय पनोरमा के गैर-फीचर भाग में दिखाई गई पहली फिल्म है। आशीष पांडेय ने बताया कि उनकी फिल्म में गड़बड़ी वाले क्षेत्रों में बढ़ती उम्र के बच्चों के सपनों की कहानी है जो तनावमुक्त खूबसूरत दुनिया चाहते हैं। कश्मीर घाटी में भारत-पाकिस्तान सीमा पर एक छोटा सा गांव है। इस गांव के लोग हमेशा दो देशों की गोलाबारी में फंसे रहते हैं। एक रात आठ वर्ष की बच्ची नूरेह पाती है कि उसकी नींद में गोलीबारी होती है और यह जब आंख खोलती है तब गोलाबारी समाप्त होती है।
इस फिल्म की शूटिंग कश्मीर में भारत-पाक सीमा पर एक गांव में की गई, जहां बच्चे तनाव में बड़े होते हैं और एक शांतिपूर्ण बेहतर दुनिया का सपना देखते हैं। इसके पात्रों में गांव के वास्तविक निवासी हैं और इसके संवाद स्थानीय कश्मीरी और उर्दू में हैं। इसके कलाकार हैं-नूर, सानिया और आफरीन। संवाददाता सम्मेलन में सिनेमाटोग्राफर सुशील गौतम भी मौजूद थे।
आशीष पांडेय ने कहा कि फिल्मों को लोगों को दुनिया के बारे में अधिक संवेदनशील बनाना चाहिए और लोगों में मानव भावना होनी चाहिए। आशीष पांडेय एसआरएफटीआई कोलकाता से स्नातक हैं और साउंड रिकार्डिंग और डिजाइन विशेषज्ञ हैं। उन्होंने पहली फिल्म द केबिन मैन (2007), ओपन डोर्स (2011) तथा नूरेह (2018) का निर्देशन किया है।