नये भारत के साथ पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी. एन. शेषन के विशेष लगाव को ध्यान में रखते हुए भारतीय चुनाव आयोग ने नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन मैनेजमेंट के सेंटर फॉर कॉरिकुलम डेवलपमेंट में चुनावी अध्ययन के अंतर-विषयी दृष्टिकोण पर एक विजिटिंग चेयर स्थापित करने और उसके वित्त पोषण का निर्णय लिया है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी इस चेयर के संरक्षक होंगे।
मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने अहमदाबाद के निरमा विश्वविद्यालय के विधि संस्थान में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए इसकी घोषणा की। इस अवसर पर निरमा विश्वविद्यालय के अध्यक्ष डॉ. के. करसनभाई पटेल, चुनाव आयोग के महासचिव उमेश सिन्हा, कुलपति डॉ. अनूप सिंह, विधि संकाय संस्थान की निदेशक डॉ. पूर्वी पोखरियाल और बड़ी संख्या में छात्रा उपस्थित थे। अरोड़ा को विश्वविद्यालय द्वारा प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री एवं न्यायविद नानी पालखीवाला की स्मृति में आयोजित लॉ कॉन्क्लेव के अवसर पर आमंत्रित किया गया था।
इस अवसर पर बोलते हुए अरोड़ा ने कहा, 'भारत की चुनावी प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं में संभावना, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा में टी एन शेषन के स्थायी योगदान ने उनके नाम को दुनिया भर में सर्वोत्तम चुनावी प्रथाओं का पर्याय बना दिया है। उनकी स्मृति में भारतीय चुनाव आयोग इस चेयर की स्थापना करेगा। हम यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे कि अगले शैक्षणिक सत्र अगस्त-सितंबर 2020 के दौरान यह चेयर पूरी तरह काम करना शुरू कर दे।'
महासचिव उमेश सिन्हा, आईआईआईडीईएम के महानिदेशक धर्मेंद्र शर्मा और ईसीआई की निदेशक मोना श्रीनिवास इस चेयर की स्थापना के विस्तृत तौर-तरीके निर्धारित करेंगे और उसे 15 मार्च, 2020 तक आयोग के सामने पेश किया जाएगा। विजिटिंग चेयर कार्यक्रम के तहत चुनाव अध्ययन से संबंधित क्षेत्रों में दमदार ट्रैक रिकॉर्ड वाले युवा शिक्षाविदों को लक्षित किया जाएगा। उम्मीद की गई है कि चेयर चुनाव अध्ययन के विशिष्ट पहलुओं पर एक राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी भी आयोजित करेगा। इसके अलावा विजिटिंग चेयर आईआईआईडीईएम में प्रशिक्षण एवं अनुसंधान के लिए अंतर-विषयी पाठ्यक्रम/ मॉड्यूल के डिजाइन और विकास की निगरानी भी करेगा।
भारत में चुनाव कानून के विकास एवं चलन विषय पर व्याख्यान देते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, '26 नवंबर 1950 को भारत के संविधान को लागू किया गया था और संयोग से उसकी 70वीं वर्षगांठ करीब है। ऐसे में आगे की राह पर विचार-विमर्श के लिए हमारे पास एक उल्लेखनीय अवसर है।'
अरोड़ा ने कहा, 'हमारा संविधान एक जीवित दस्तावेज है। कई मायनों में यह एक उभरता हुआ दस्तावेज भी है जो कई बार समय के परीक्षण पर खरा उतरा है। अपनी स्थापना के बाद से ही संविधान ने हरेक भारतीय के लिए अधिकारों, हकों और कर्तव्यों के साथ-साथ समानता, स्वतंत्रता और गरिमा की त्रिमूर्ति स्थापित की है जिसने जीवन को सार्थक बनाया है।' मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा, 'किसी अन्य संस्थान की तरह चुनाव आयोग को भी नई एवं उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को लगातार मजबूत करना होगा।'
अरोड़ा ने कहा, 'यह चुनाव यात्रा उल्लेखनीय रही है। लेकिन हम पिछली प्रशंसाओं के कारण नहीं बैठ सकते। आयोग कहीं अधिक सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि प्रक्रियाओं को समय और मौजूदा तकनीक के अनुकूल बनाया जा सके और मतदाता भागीदारी बढ़ाई जा सके। हाल में गायब रहने वाले मतदाताओं की अवधारणा को हमारी प्रक्रिया का हिस्सा बनाया गया है। हमें मतदाताओं की पात्रता के लिए एक से अधिक तिथियों की उम्मीद करते हैं। हमारे पास बड़ी संख्या में विदेशी आबादी है और हमें चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिए एक तंत्र तैयार करना होगा। हमें चुनावी अखाड़े में धन शक्ति, गलत सूचना और आपराधिक तत्वों की जांच करने के लिए कड़ी मेहनत करने की भी जरूरत है।'
उन्होंने कहा कि हमारी चेतना में लोकतंत्र की जड़ें गहरी हैं। ऐसे में क्या सही और गलत का भाव हमारी भावना में अंतरनिहित है। इसे देखते हुए मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि इस देश का मतदाता अब राजनीतिक लोकतंत्र के खेल में भोला, निष्क्रिय प्राप्तकर्ता नहीं है। अरोड़ा ने जोर देकर कहा कि यह जानते हुए कि मतदान अनिवार्य नहीं है, 67% से अधिक लोग विशेष रूप से महिला, वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांग व्यक्ति मतदान के लिए निकलते हैं। ताकत 'हम लोगों' की भावना में निहित है। यह लोगों की सामूहिक शक्ति है जिसे संविधान के माध्यम से लागू किया गया है।