मैं उस चाल में बड़ा हुआ हूं जहां इस फिल्म की शूटिंग हुई है। चाल के कुछ अनुभवों का मैंने फिल्म में उपयोग किया है। पहले दिन से ही शूटिंग में हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा परन्तु बाद में चाल के लोगों ने अच्छा सहयोग दिया। फिल्म की शूटिंग में सहायता देने के लिए पूरा चाल शांत हो जाता था। यह बातें निर्देशक गणेश शेलर ने आईएफएफआई 2019, पणजी, गोवा में अपनी फिल्म गधूल के बारे में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहीं।
सत्यजीत रे और उमेश कुलकर्णी मेरे पसंदीदा निर्देशक हैं। जब मैं बीएससी की परीक्षा दे रहा था तो मैंने फिल्म निर्माण में अपना भविष्य बनाना तय किया। मैंने अपनी बीएसई की पढ़ाई पूरी भी नहीं की और फिल्म निर्माण से जुड़ गया।
गणेश शेलर ने कहा कि एक साल मे मैंने पटकथा लिखी। सात दिनों में फिल्म की शूटिंग पूरी हुई। तीन-चार महीनों में पोस्ट प्रोडक्शन का काम समाप्त हुआ। फिल्म का बजट तीन लाख रुपए है। छह सहायक निर्देशकों ने फिल्म में पैसे लगाए हैं। मैंने अपने जिम के लिए क्राउड फंडिंग से धन एकत्रित किया है। जब फिल्म को कोलकाता फिल्म महोत्सव में सर्वश्रेष्ठ लघु फिल्म का पुरस्कार मिला तो फिल्म बजट की आधी राशि हमें मिल गई।
शेलर की यात्रा चार साल पहले शुरू हुई जब उन्होंने उमेश कुलकर्णी की कार्यशाला में भाग लिया। उन्हें फिल्म निर्माण की जानकारी मिली। मैंने पहली लघु फिल्म जोखड़ लिखी। 40 हजार रुपए के बजट में इस लघु फिल्म का निर्माण हुआ।
गधूल फिल्म के निर्माता स्वपनिल साराडे भवन निर्माण कला के क्षेत्र से आते हैं। उन्होंने कहा कि हम लोगों ने बिना किसी वापसी की संभावना के साथ काम किया। मैंने जोखिम उठाया। हमारी टीम अच्छी थी। टीम ने नि:शुल्क काम किया। प्रत्येक सदस्य बहुत उत्साहित था। कई समस्याएं आईं लेकिन अंत में हम सफल हुए।
साराडे ने वरिष्ठ अभिनेत्री स्मिता तांबे के समर्थन के प्रति आभार व्यक्त किया। वे एक वरिष्ठ अभिनेत्री हैं और हम लोग युवा थे। उन्होंने हमारे साथ 12 घंटों की शिफ्ट में काम किया और अंतिम दिन शिफ्ट 18 घंटे चली।
भविष्य के बारे में गणेश शेलर ने कहा कि मैं अभी एक लघु कथा लिख रहा हूं। मैं फीचर फिल्में भी बनाना चाहता हूं।
उन्होंने उभरते हुए फिल्म निर्माताओं से कहा कि उन्हें दृष्टि एवं विचार प्राप्त करने के लिए अपने स्वयं के जीवन को देखना चाहिए। युवा फिल्म निर्माताओं को फिल्म के साथ मानसिक तौर पर जुड़ना चाहिए।