इनसॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्ट्सी बोर्ड ऑफ इंडिया (आईबीबीआई) ने इन्सॉल्वेंसी एंड बैंक्रप्सी बोर्ड ऑफ़ इंडिया विनियम, 2016 में संशोधन किया है। इन विनियमों में किए गए कुछ संशोधन दिवाला और दिवालियापन संहिता अधिनियम, 2019 के परिणामस्वरूप किए गए हैं, जो 5 अगस्त, 2019 को लागू हुआ था।
दिवालिया और दिवालियापन संहिता कॉरपोरेट देनदारों के पुनर्गठन और दिवालिया समाधान के लिए नैगमिक दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (सीआईआरपी) की परिकल्पना करता है। एक दिवालिया पेशेवर सीआईआरपी आयोजित करता है और सीआईआरपी के दौरान अपने परिचालनों का प्रबंधन करता है। आईपी की जिम्मेदारियों और सीआईआरपी के महत्व को ध्यान में रखते हुए यह संहिता आईबीबीआई और आईपीए एक दायित्व सौंपता है। यह दायित्व आईपी के कार्य की निगरानी करना और नैगमिक देनदारों की दिवालिया प्रक्रिया से संबंधित जानकारियों और रिकार्ड को एकत्र करता है। यह कुछ सूचनाओं और सीआईआरपी से संबंधित रिकार्ड को आईपी और आईबीबीआई को अग्रेषित/प्रस्तुत करने का भी दायित्व सौंपता है।
सीआईआरपी और आईपी के संचालन में पारदर्शिता और जवाबदेही के हित तथा आईबीबीआई, आईपीए और आईपी को अपनी सांविधिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए संशोधित विनियमों में सीआईआरपी के जीवन चक्र को शामिल करते हुए प्रपत्रों का एक सैट दाखिल करना अपेक्षित बनाता है। यह सैट आईडीबीआई की वेबसाइट पर उपलब्ध इलेक्ट्रोनिक प्लेटफार्म आनलाइन जमा कराना होता है। एक आईपी को इस कोड के तहत अनुमत कार्रवाई के लिए आईपी उत्तरदायी होगा। इसमें फार्म जारी करने में विफलता या विलम्ब से दाखिल करने के दायित्व के लिए प्राधिकार को जारी करना या नवीनीकरण से मना करना, फार्म जमा करने में असफल रहना और गलत या देरी से जमा करना शामिल हैं। ये संशोधन विनियमन 28 नवम्बर, 2019 से लागू होंगे, जो इस वेबसाइट www.mca.gov.in और www.ibbi.gov.in पर उपलब्ध हैं।