जम्मू और कश्मीर और लद्दाख क्षेत्रों की पूर्ण आर्थिक क्षमता का उपयोग पिछले 70 वर्षों से नहीं हो पा रहा था, क्योंकि जम्मू और कश्मीर के लोग पिछले कई दशकों से सीमा पार से प्रायोजित आतंकवादी हिंसा और अलगाववाद से पीड़ित रहे हैं। अनुच्छेद 35A और कुछ अन्य संवैधानिक अस्पष्टताओं के कारण इस क्षेत्र के लोग भारत के संविधान में उल्लेखित अधिकारों से वंचित रहे हैं और उन्हें देश के अन्य हिस्सों में नागरिकों को मिलने वाले विभिन्न केन्द्रीय कानूनों का लाभ नहीं मिल पा रहा था।
जम्मू और कश्मीर सरकार की सूचना के अनुसार घाटी में कृषि कार्य सुचारु रूप से चल रहा है। वित्त वर्ष 2019-20 (जनवरी, 2020 तक) के दौरान 18.34 लाख मीट्रिक टन ताजे फल (सेब) घाटी से बाहर भेजे गए हैं। सितंबर 2019 में भारत सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली बाजार योजनाओं के तहत बागवानी क्षेत्र में पहली बार 70.45 करोड़ रुपये की कीमत के 15769.38 मीट्रिक टन सेबों की खरीद की गई। यह खरीद 28 जनवरी, 2020 तक की है, जिसे नाफेड के जरिए कश्मीर घाटी में सीधे सेब उत्पादकों से खरीदा गया है। इस योजना को 31 मार्च, 2020 तक विस्तार दिया गया है। वर्ष 2019 में मधुमक्खी पालन क्षेत्र में 813 मीट्रिक टन कच्चे रेशम के कोवे का उत्पादन दर्ज किया गया। वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तीन तिमाहियों के दौरान 688.26 करोड़ रुपये की हस्तशिल्प सामग्री का निर्यात किया गया। पर्यटन को प्रोत्साहन देने के लिए कई अभियान भी शुरू किए गए हैं।
जम्मू और कश्मीर सरकार ने सूचित किया है कि भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा किए जाने वाले सामयिक श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार 15 वर्ष और उससे अधिक आयु समूह के लोगों के संबंध में श्रमिक आबादी औसत 51 प्रतिशत है।
भारत सरकार, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के समग्र विकास के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। 80,068 करोड़ रुपये वाले प्रधानमंत्री विकास पैकेज -2015 के तहत सड़क, बिजली, स्वास्थ्य, पर्यटन, कृषि, बागवानी, कौशल विकास क्षेत्र आदि में प्रमुख विकास परियोजनाएं पहले से ही कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। भारत सरकार द्वारा वैयक्तिक लाभार्थी केंद्रित योजनाओं सहित कई प्रमुख योजनाएं जम्मू-कश्मीर क्षेत्र के विकास के लिए कार्यान्वित की जा रही हैं।