भारत आर्थिक विकास प्रक्रिया में टिकाऊपन लाने का प्रयास कर रहा है-आर्थिक समीक्षा 2019-20

 


 



 


केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में पेश की गई आर्थिक समीक्षा, 2019-20 में सतत विकास और जलवायु परिवर्तन के संबंध में कई अहम बातों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि संपदा सृजन की प्रक्रिया में पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।


समीक्षा में कहा गया है कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय असमानताओं से मुक्‍त एक टिकाऊ भविष्‍य प्राप्‍त करने हेतु तथा भावी पीढि़यों के लिए पृथ्‍वी हरी-भरी और स्‍वास्‍थ्‍यप्रद पृथ्‍वी सुनिश्चित करने और भविष्‍य की चुनौतियों से निपटने के लिए सतत विकास लक्ष्‍य एक वृहद रूपरेखा पेश करता है।


समीक्षा के अनुसार भारत अपनी आर्थिक विकास में टिकाऊपन लाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युतीकरण, नवीकरणीय स्रोतों के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने, कुपोषण को खत्‍म करने, गरीबी उन्‍मूलन, लड़कियों के लिए प्राथमिक शिक्षा पहुंच को बढ़ावा देने, सभी के लिए आवास और स्‍वच्‍छता की सुविधा उपलब्‍ध कराने, वैश्विक बाजारों में प्रतिस्‍पर्धी बनने के लिए युवाओं को कौशलयुक्‍त बनाने तथा वित्‍त तथा वित्‍तीय सेवाओं तक पहुंच की सुविधा के माध्‍यम से  सुव्‍यवस्थित पहल करते हुए समावेशी विकास लाना चाहता है।


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि भारत ने एसडीजी इंडिया सूचकांक 2019 के आकलन के अनुसार सतत विकास लक्ष्‍य प्राप्‍त करने की दिशा में काफी प्रगति की है। एसडीजी सूचकांक के अनुसार केरल, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, गोवा, सिक्किम, चंडीगढ़ और पुद्दुचेरी सबसे आगे हैं। यह उल्‍लेखनीय है कि सूचकांक में 2019 में आकांक्षी श्रेणी में देश का कोई राज्‍य या केंद्रशासित प्रदेश शामिल नहीं हैं। कुल मिलाकर यह देखना उत्‍साहजनक  रहा है कि सूचकांक में भारत का समग्र प्राप्‍तांक 2018 के 57 से सुधर कर वर्ष 2019 में 60 हो गया है। जो इस बात का संकेत है कि देश ने एसडीजी लक्ष्‍यों की प्राप्ति की दिशा में प्रभावी प्रगति की है।


आर्थिक समीक्षा में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विभिन्‍न सतत विकास लक्ष्‍यों में आपस में अंतर-संबंध होता है और नीतियों के सुदृढ़ीकरण और विभिन्‍न क्षेत्रों के प्रबंधन को एकीकृत करने में इनकी बड़ी भूमिका होती है। यह व्‍यक्तिगत घटकों या अल्‍पकालिक परिणामों के बजाय पूरी व्‍यवस्‍था को एकरूपता में देखने की आवश्‍यकता पर बल देता है। यह दुर्लभ संसाधनों की प्रतिस्‍पर्धा को कम करते हुए क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।


एसडीजी नेक्‍सस का एक उदाहरण शिक्षा और बिजली का संबंध है। ऐसा देखा गया है कि स्‍कूलों में बिजली तथा लड़कियों और लड़कों के लिए अलग से शौचालयों की सुविधा स्‍कूलों में एक स्‍वस्‍थ और सकारात्‍मक वातावरण बनाते हैं। एसडीजी नेक्‍सस का एक अन्‍य उदाहरण स्‍वास्‍थ्‍य और बिजली का संबंध है। क्‍योंकि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं को बेहतर बनाने की कई योजनाएं काफी हद तक स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों में बिजली की उपलब्‍धता पर निर्भर करती हैं।   


आर्थिक समीक्षा में कहा गया है कि एक जवाबदेह राष्‍ट्र के रूप में भारत कई योजनाओं के जरिए आर्थिक विकास की ओर बढ़ रहा है। लेकिन इस क्रम में वह सतत विकास को भी ध्‍यान में रखे हुए हैं। समीक्षा में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से हैं जहां विकास प्रक्रिया के बावजूद वन और वृक्ष आच्‍छादित क्षेत्रों में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत में वृक्ष आच्‍छादित क्षेत्र का दायरा 80.73 मिलियन हेक्‍टेयर तक पहुंच गया है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.6 प्रतिशत है। इसमें कर्नाटक वन क्षेत्र के मामले में (1,025 वर्ग किलोमीटर) पहले नंबर पर है जिसके बाद (990 वर्गकिलोमीटर) के साथ आंध्र प्रदेश और (371 वर्गकिलोमीटर) के साथ जम्‍मू कश्‍मीर का स्‍थान है। हालांकि , मणिपुर, मेघालय, अरूणाचल प्रदेश और मिजोरम में वन क्षेत्रों में कमी आई हैं। देश में वनों की स्थिति पर जारी रिपोर्ट 2019 में कहा गया है कि देश के वनों में कुल कार्बन भंडारण 7124.6 मिलियन टन हैं जो कि 2017 की तुलना में 42.6 मिलियन टन ज्‍यादा हैं।


आर्थिक समीक्षा में फसल अवशेषों के जलाए जाने को पर्यावरण के लिहाज से चिंता का बड़ा कारण बताया गया है। भारत दुनिया में कृषि आधारित दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। पूरे साल फसलों की बुआई होने के कारण यहां बड़ी मात्रा में फसल अवशेष बनते हैं। देश के उत्‍तरी हिस्‍सों में खासकर पंजाब, हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश और राजस्‍थान जैसे राज्‍यों में बड़े पैमाने पर पराली जलाई जाती है। देश में 178 मिलियन टन अतिरिक्‍त फसल अवशेष उपलब्‍ध है जिनके जलाए जाने से प्रदूषण का स्‍तर बढ़ता है और हवा की गुणवत्‍ता खराब होती है।


आर्थिक समीक्षा में इस बात पर जोर दिया गया है कि पराली जलावन से पीएम 2.5 के सघनता में काफी वृद्धि होती है। फसल कटाई के मौसम में दिल्‍ली में वायुमंडल में ठहराव आ जाने के कारण और उसी समय खरीफ की फसल के अवशेष जलाए जाने से हवा की गुणवत्‍ता काफी खराब हो जाती है।


समीक्षा में इस समस्‍या से निपटने के लिए कई उपाय सुझाए गए हैं, जिसमें ऐसी खेती को बढ़ावा देने की बात कहीं गई है जिससे फसलों के अवशेष कम निकलें, किसान एक फसल के बाद तुरंत दूसरी फसल की बुआई करें, फसल अवशेषों को रिसाइकिंलिंग के लिए पास के ताप विद्युत संयंत्रों में ले जाया जाए तथा कृषि उपकरणों की खरीद और प्रदूषण रोकने के लिए किसानों को ऋण की सुविधा दिलाने जैसे उपाय शामिल हैं।


समीक्षा में कहा गया है कि इस समस्‍या से निपटने के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्‍तर प्रदेश और राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली में कृषि में बड़े पैमाने उपकरणों के इस्‍तेमाल को बढ़ावा देने के लिए केंद्र की ओर से योजना चलाई गई है। इसके तहत किसानों को पराली के प्रबंधन तथा उपकरणों की खरीद के लिए मदद देने की व्‍यवस्‍था है।


समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि सतत विकास पर अधिक ध्‍यान दिए जाने के लिए व्‍यक्तिगत और संस्‍थागत स्‍तर पर ज्ञान और प्रौद्योगिकी के हस्‍तांतरण को बढ़ावा देने, वित्‍तीय प्रणाली को सुव्‍यवस्थित बनाने, पूर्व चेतावनी प्रणाली को लागू करने, जोखिम प्रबंधन पर काम करने तथा नीतियों के क्रियान्‍वयन में आने वाली कमियों को दूर करते हुए केंद्र और राज्‍य सरकारों को सहकारी संघवाद की भावना से काम करना होगा। समीक्षा में आखिर में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकसित देशेां को पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए अंतर्राष्‍ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी वित्‍तीय जवाबदेही और वायदों का सम्‍मान करना चाहिए।